कब मेहरबानी किसी की कब कोई ख़ैरात है
ज़िंदगी तो बस खुदा की दी हुई सौग़ात है
यूं बदल देना ये किस्मत और क़ुदरत का लिखा
ना तुम्हारे बस में है ये ना हमारे हाथ है
ज़िंदगी के इस सफ़र में मैं अकेला ही नहीं
साथ मेरे तेरी यादों की हसीं बारात है
क्या कहूँ कैसे कहूँ मैं अपने दिल की दास्ताँ
प्यास होठों पे लिए हूँ पलकों पे बरसात है
एक पल ये और कुछ भी सोचने देता नहीं
तेरी यादों का जो लश्कर जेहन पे तैनात है
ज़िंदगी भी खेल है रस्साकशी का दोस्तों
इक तरफ़ हैं ख़्वाहिशें तो इक तरफ औक़ात है
जब से दिल के अंजुमन में आ गयी उसकी महक
महँका महँका दिन है मेरा महँकी महँकी रात है
दूर जाकर भी वो 'सूरज' याद आता है बहुत
भूल पाये हम न उसको कुछ तो उसमे बात है
डॉ सूर्या बाली 'सूरज'