साँचे मे अपने आप को ढलने नहीं देते ।
दिल मोम का रखते हैं पिघलने नहीं देते॥
इक बार बना लेते हैं मेहमान जिसे हम,
खाना-ए-दिल से उसको निकलने नहीं देते॥
मौक़ा नहीं देते है बार बार किसी को,
दुश्मन को कभी गिरके सम्हलने नहीं देते॥
जो छीन ले चैन-ओ-अमन, आराम किसी का,
आँखों मे ऐसे ख़्वाब को पलने नहीं देते॥
कांटो से सज़ा रखे हैं ये राह-ए-ज़िंदगी,
फूलों की तरफ दिल को मचलने नहीं देते॥
रहते खड़े हर गाम रौशनी के साथ हम,
“सूरज” कभी उम्मीद का ढलने नहीं देते॥
डॉ। सूर्या बाली "सूरज"