जुल्फें वो खोलकर जो चलें हैं अदा के साथ
आया हो जैसे झूम के सावन घटा के साथ
हलचल हुई है दिल के समंदर के दरमियाँ
फेंका जो उसने प्यार का कंकड़ अदा के साथ
सहरा लबों पे मेरे समंदर है आँख में
यादों की बारिसें भी हैं ग़म की घटा के साथ
शिकवे गिले भुला के चले आओ फिर से तुम
तुमको बुला रहा हूँ मैं अब इल्तिज़ा के साथ
महँका गयी है दिल के घर आँगन को दोस्तों
आई जो उसके प्यार की खुशबू हवा के साथ
मैं लाख चाहकर भी उसे भूलता नहीं
जाने ये कैसा रिश्ता है उस बेवफ़ा के साथ
उसने मेरा इलाज़ भी कुछ इस तरह किया
देता रहा वो ज़हर भी मुझको दवा के साथ
मुझको न चाहिए ये ज़माने की दौलतें
मुझको तो ज़िंदा रहना है अपनी अना के साथ
कागज़ की नाव डूब ही जाती है एक दिन
फिर कैसे अपनी निभती कभी बेवफ़ा के साथ
तुझमे ख़ुदा में फ़र्क नहीं रह गया है अब
लेता है तेरा नाम भी 'सूरज' खुदा साथ
डॉ. सूर्या बाली "सूरज"