दहेज अभिशाप है
किसी ने पूछा:
दहेज अभिशाप है या वरदान?
थोड़ा सा सोचा समझा, फिर बोला-
इसमे मिलता है दान, इसलिए हो सकता है वरदान।
उन्होने झट कहा नहीं भाई ऐसा नहीं ,
दहेज अभिशाप है, वरदान नहीं॥
तुरंत ध्यान आया, ये तो दहेज मे बड़े आगे थे,
अपने ही लड़के की शादी मे,
कैश, कार और कलर टीवी मांगे थे।
जो चिल्लाते हैं दहेज लेना पाप है,
यदि वही सम्हल जाएँ।
तो शायद दहेज उन्मूलन आसानी से हो जाये।
यह एक सामाजिक बुराई है।
इस पे सरकारी नियम काम नहीं करेंगे।
यह हमारा कर्तव्य है-इसे हम दूर करेंगे।
सावधान युवकों !
यह एक सभ्य समाज बनाने की चुनौती है।
जलती महिलाओं को बचाने की चुनौती है।
अगर अभिशाप के कलंक को मिटाना है।
दहेज को सचमुच वरदान बनाना है।
तो बिना दहेज की ही दुल्हन घर मे लाना है!!
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
भ्रष्टाचारी महोदय
जलते हुए मकान, जलते हुए इंसान,
क्या किसी ने देखा।
ऑफिस, बाज़ार, अस्पताल, स्कूल और
जाने कहाँ कहाँ फैला हुआ भ्रष्टाचार,
क्या किसी ने देखा?
भ्रष्टाचार कहीं भी आसानी से देखने को मिल जाएगा,
क्या आप उसे देखना चाहेंगे?
देखिये ! खूब देखिये...
यह बिलकुल नहीं सरमाएगा।
निर्लज्ज है, पुराना है, कण कण मे समाया है,
भ्रष्टाचार को हम, आप या किसी और ने बनाया है?
क्या आप भ्रष्टाचारी है?
नहीं तो।
तो भ्रष्टाचार मे क्यूँ लिप्त हैं?
आप से मतलब, मैं लिप्त हूँ अपने काम में,
बैठा हूँ अपने मुकाम में,
आप कौन हैं? मेरे काम मे हस्तक्षेप करनेवाले?’
फ़र्जी हिदायत देने वाले,
क्या आपको पता नहीं भ्रष्टाचार ही मेरा व्यापार है,
यही मेरा यार है, यही मेरी सरकार है।
हाँ....मैं भ्रष्टाचारी हूँ, भ्रष्टाचारी हूँ।
क्या आपको इससे कोई सरोकार है।
आप यहाँ से जाइए, अपना काम करिए।
इसको आप क्या करेंगे ये तो,
भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार है...
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
जंक ईमेल
हाय कैसी हो? शायद अब तक नाराज़ हो?
हो भी न क्यूँ। तुम्हें पूरा हक़ है नाराज होने का।
मुझे मालूम नहीं तुम मुझे याद करती हो की नहीं,
पर मै तुम्हें कभी भूला ही नहीं।
तुम्हारे नाम का फोल्डर अब भी मेरे लैपटाप पे पड़ा है,
जिसमे अब पहले की तरह भीड़ भाड़ नहीं रहती,
तुम्हारी कुछ स्नैप और नोट्स पड़े हैं उसमे,
जब भी याद आती हो तो
माऊस का कर्सर पहुंचता है और खोल देता है उस फोल्डर को
और फिर खो जाता हूँ पुराने लम्हों और यादों में,
ये इंटरनेट भी क्या चीज़ है,
बड़ा परेशान करता है दो चाहने वालों को,
बड़ी गलतफ़हमी पैदा करता है,
अभी कल ही तुम्हारे अकाउंट से एक मेल आया,
सोचा तुमने भेजा होगा,
खोला तो पता चला एक गलत साइट का लिंक था उसमे,
जैसे मुझे साँप सूंघ गया हो? काटो तो खून नहीं,
बड़ा ठगा सा महसूस कर रहा था,
फिर क्या था तुम्हारे नाम के ईमेल ढूढ़ने लगा,
अच्छा हुआ मैंने तुम्हारे नाम का फोल्डर बनाया था,
तुम्हारी ईमेलों को उसमे छुपाया था,
मैंने कई ईमेल पढ़ी भी नहीं थी,
कितनों को पढ़ा था लेकिन ध्यान नहीं दिया था, की क्या था उसमे।
लेकिन आज सभी बड़ी अनमोल सी लग रही थी,
जैसे कोई बेशकीमती धरोहर हों,
आज बड़े दिनो के बाद फिर हंसा हूँ, वो भी अकेले मे।
वही असाइन्मंट का रोना, वीकेंड पे मूवी के प्लान, बाहर डिनर की जिद…..
आज पता नहीं सब कुछ क्यूँ अच्छा लग रहा है।
सच मे किसी ने कहा है, “मिल जाये तो मिट्टी है, खो जाये तो सोना है”
इस आशा के साथ की इंटरनेट कभी कभी दो दोस्तों को फिरसे मिला देता है।
अब मैं उस जंक मेल की रिप्लाइ भेज रहा हूँ,
अपने दरदों की गहराई भेज रहा हूँ,
तुम्हें अगर सही लगे तो जबाब देना।
वरना जंक मेल समझ के डेलीट कर देना।
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ
सब कहते भोला भाला हूँ, हरफन मौला मतवाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ। मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ।।
तन पे जो पुराने कपड़े हैं, वो भी चकती से जकड़े हैं,
पैरों मे जूते नहीं मेरे, ऐसे ही रहने वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
ना शिक्षा न ही प्यार मिला, न मात पिता का दुलार मिला।
तीन पहियों पे जीवन बीता, जब से मैं होश संभाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
तन जर्जर है, मुह दाँत नहीं, लेकिन इसकी कोई बात नहीं।
मैं दुबला पतला हूँ फिर भी, हिम्मत का बड़ा निराला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
ये धूप पसीने सह करके, जीवन मे केवल लड़ करके।
मैं मेहनत के बलबूते पे, दो रोटी खाने वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
दिन भर मैं चलता रहता हूँ, न शीत धूप से डरता हूँ।
बचपन से ही यारों मैंने, अपने को इसमे ढाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
जब भानु रश्मि टकराती है, खिसियाकर वापस जाती है।
क्या गर्मी लू सतायेगी, मैं खुद ही मे इक ज्वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
कभी अच्छे पैसे पाता हूँ, कभी भूखे ही सो जाता हूँ।
एहसान किसी का लेता नहीं, मेहनत की खाने वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
नेता बनने की चाह नहीं, ईर्ष्या की मन मे दाह नहीं।
मैं हर मज़हब का प्रेमी हूँ, और सबसे मिलने वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
हर अड्डे और चौराहों पर, हर गली और हर राहों पर।
अच्छे औ बुरों की बस्ती मे भी, निर्भय जाने वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
मेरे दिल मे कोई पाप नहीं, औरों के प्रति संताप नहीं।
मन का बिलकुल उज्ज्वल हूँ मैं, पर तन का थोड़ा काला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
सबको मंज़िल तक पहुंचाता, अपनी मंज़िल खुद न पाता।
मारा मारा दिन भर फिरता, मैं ऐसी किस्मत वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
अन्याय कभी सह सकता नहीं, चोरी चुगली भी करता नहीं।
अपने विचार न कहूँ भले, पर खुले विचारों वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
सबको ही काम बताता हूँ, मेहनत की राह दिखाता हूँ ।
मुश्किलों से ना मैं डरता हूँ, न हिम्मत हारने वाला हूँ।
मैं तो इक रिक्शे वाला हूँ............
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”