ज़िंदगी का रंग फीका था मगर इतना न था
इश्क़ में पहले भी उलझा था मगर इतना न था
क्या पता था लौटकर वापस नहीं आएगा वो
इससे पहले भी तो रूठा था मगर इतना न था
दिन में दिन को रात कहने का सलीका देखिये
आदमी पहले भी झूठा था मगर इतना न था
अब तो मुश्किल हो गया दीदार भी करना तिरा
पहले भी मिलने पे पहरा था मगर इतना न था
उसकी यादों के सहारे कट रही है ज़िंदगी
भीड़ में पहले भी तन्हा था मगर इतना न था
टुकड़ा टुकड़ा हो गया है ज़िंदगी का आईना
इससे पहले भी मैं टूटा था मगर इतना न था
उसके जाने से बढ़ी 'सूरज' मेरी तिष्नालबी
प्यार के दरिया में प्यासा था मगर इतना न था
डॉ सूर्या बाली 'सूरज'