कश्मकश ज़िन्दगी में ज़ारी है
लम्हा लम्हा सदी पे भारी है
क्यूँ खुली रहती हैं मिरी पलकें
अब इन्हें किसकी इंतज़ारी है
इक नशा सा दिलो दिमाग़ पे है
बिन पिये कैसी ये ख़ुमारी है
धड़कनें दिल की ठहरी ठहरी हैं
जाने कैसी ये बेक़रारी है
दूसरा दिल में आ न पाएगा
दिल पे अब तेरी पहरेदारी है
भूल जाऊँ के याद रखूँ तुझे
बस यही जंग खुद से ज़ारी है
ग़म मुझे दे के दे खुशी 'सूरज'
अब तो ये ज़िन्दगी तुम्हारी है
डॉ सूर्या बाली 'सूरज'