रूह को जिस्म से जुदा कर दे
ख़त्म साँसों का सिलसिला कर दे
भूल जाऊँ मैं उसकी यादों को
ये ख़ुदा कोई हादसा कर दे
दिल का लगना कहीं भी मुश्किल है
मेरी तनहाई खुशनुमा कर दे
जिक्र उसका न छेड़ बादे सबा
ज़ख्मे दिल फिर न ये हरा कर दे
दास्ताँ प्यार की मुकम्मल हो
तू भी इक बार तो वफ़ा कर दे
बागबाँ तू कभी न ग़म करना
फूल कोई अगर दग़ा कर दे
मिल सके जेह्न को सुकूँ ‘सूरज’
दर्दे दिल की कोई दवा कर दे
डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’