इक शख़्स इस हयात का नक़्शा बदल गया।
दिल के चमन का रंगो बू सारा बदल गया॥
सोचा था अब न प्यार करेगा किसी से दिल,
मिलते ही उससे सारा इरादा बदल गया॥
महफिल में हो रही थी उसी की ही गुफ़्तगू,
देखा उसे तो सबका ही चेहरा बदल गया॥
जबसे मिला सहारा किसी और का उसे,
उस दिन से बातचीत का लहजा बदल गया॥
अब रात दिन ख़यालों में ख़्वाबों में है वही,
अंदाज़ मेरे जीने का सारा बदल गया॥
कुछ भी असर हुआ नहीं आए गए हज़ार,
इक वो चला गया तो ज़माना बदल गया॥
जिसको समझ रहे थे कि बदलेगा न कभी,
पहचानता नहीं है अब ऐसा बदल गया॥
हमराज़ हमसफ़र भी थे मंज़िल भी एक थी,
आया इक ऐसा मोड़ कि रस्ता बदल गया॥
“सूरज” किसी से प्यार अगर मांगना पड़े,
समझो वहीं पे प्यार का रिश्ता बदल गया॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”