ले आई मुझको देख मेरी आशिक़ी कहाँ
ज़िंदा तो आज भी हूँ मगर ज़िंदगी कहाँ
हरसू है बेवफ़ाई दगा झूठ का धुंवा
दिल की खुली भी खिड़की तो जाके खुली कहाँ
कहने को आस पास तो खुशियाँ हैं बेशुमार
मिलती थी तेरे साथ मे जो वो खुशी कहाँ
मिलने को तो मिले हैं मुझे सैकड़ों हसीन
लेकिन तुम्हारे जैसी मिली चुलबुली कहाँ
जज़्बात अब तो दिल के मेरे संग हो गए
एहसास की चादर भी रही मखमली कहाँ
हिन्दू है कोई सिख तो मुसलमान कोई है
मुझको कोई बताए के है आदमी कहाँ
जो दूर कर दे दिल से अँधेरों के सिलसिले
'सूरज' बता दे मुझको है वो रौशनी कहाँ
डॉ सूर्या बाली 'सूरज'