ज़िंदगी के सफर में फूल मिले ख़ार मिले।
अजनबी लोग मिले, अजनबी दयार मिले।।
जिससे मिलना था मुझे, वो कभी मिला ही नहीं,
जिससे बचते रहे, वो मुझको बार बार मिले॥
ये न पूछो कि मिला क्या क्या मुहब्बत मे सिला,
कभी तो ज़ख्म मिले दिल को, कभी प्यार मिले॥
दिल की हसरत थी कि कोई मुझे दिलदार मिले,
जो मेरे दिल से न निकले इक ऐसा यार मिले॥
ठहर गयीं है दिल की धड़कने, जाने से तेरे,
तू अगर आए तो फिर से इन्हे रफ़्तार मिले।।
उठा के देखा जो पर्दा, मैं उनके चेहरे से,
भेड़ कि खाल मे लिपटे हुए सियार मिले॥
जिसे महसूस करना था, मेरे दिल की धड़कन,
राह में बनके वो हरदम मुझे दीवार मिले॥
कोशिशें लाती है हर रंग यहाँ पे “सूरज”,
संग पे पिस के हिना जैसे रंगदार मिले।।
-डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”