ज़िंदगी कर दी सनम तेरे हवाले अब तो।
तू भी बढ़के मुझे सीने से लगा ले अब तो॥
दूर रहता हूँ तो आँखों में नमी रहती है,
मैं भी हँस लूँ तू ज़रा पास बुला ले अब तो॥
हर जगह तू ही तू अब मुझको नज़र आता है,
रास आते नहीं मस्जिद ये शिवाले अब तो॥
ज़िंदगी इस तरह मत बाँट मुझे टुकड़ों में,
रोज़ घुट घुट के तू मरने से बचा ले अब तो॥
दाम बाज़ार में मेरा भी लगेगा ऊंचा,
आँख वाले मुझे मिट्टी से उठा ले अब तो॥
आरज़ू में तेरे मिलने की अभी ज़िंदा हूँ,
हसरते-वस्ल कहीं मार न डाले अब तो॥
तेरा आँगन मेरी ख़ुशबू से महक जाएगा,
रख के गुलदान में घर अपना सज़ा अब तो॥
ज़िंदगी को किया लाचार इस मंहगाई ने,
छीनने है लगी मुफ़लिस के निवाले अब तो॥
और कुछ दूर ही मंज़िल है न घबरा “सूरज”
हँस के कहते हैं मेरे पावों के छाले अब तो॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”