ऐसे भी तो हैं संसार में।
ज़हर जो पी गए प्यार में।
सिर्फ फूलों को मत देखिये,
एक धागा भी है हार में।
ज़िंदगी इतनी कड़वी न थी,
हम पारीशां थे बेकार में।
चारागर तू न मायूस हो,
जान अब भी है बीमार मे।
दोस्ती का करो हक़ अदा,
साथ छोड़ो न मजधार में
थोड़ा मुझपे भी नज़रें करम,
आया हूँ तेरे दरबार में॥
रूठना तेरा हक़ है मगर,
प्यार बढ़ता है तकरार में॥
रुसवा करते हैं संसद को जो,
ऐसे भी तो हैं सरकार में।
उसने देखा जो “सूरज” मुझे,
फूल खिलने लगे ख़ार में।
-डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”