मुश्किलें देख कर डर न जाया करो।
ग़म के लम्हों में भी मुस्कुराया करो॥
गर बनानी है पहचान तुमको नई,
लीक से हट के रस्ते बनाया करो॥
मैं तो तूफान की गोद में हूँ पला,
ऐ हवाओं न मुझको डराया करो॥
दोस्ती प्यार औ सब्र ईमान को,
ज़िंदगी में ज़रूर आजमाया करो॥
आजकल शहर का हाल अच्छा नहीं,
शाम ढलते ही घर तुम भी आया करो॥
मैं ही आऊँ हमेशा जरूरी नहीं,
तुम भी तो घर मेरे आया जाया करो॥
बस समंदर के जैसे बड़े न बनो,
प्यास भी तो किसी की बुझाया करो॥
हर तरफ नूर तुमको नज़र आएगा,
पहले दिल के अंधेरे मिटाया करो॥
दिल से नफ़रत के काँटे हटाकर कभी,
गुल मुहब्बत के “सूरज” खिलाया करो॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”