ग़मों के दौर में हँसना सिखा गया कोई॥
सलीक़ा जीने का सबको बता गया कोई॥
किसी की चाह में उसने भी बनाए थे महल,
लगा के ठोकरें उसको गिरा गया कोई॥
पुरानी यादों की चिंगारियों को देके हवा,
ग़म-ए-फुरक़त में मेरा दिल जला गया कोई॥
अज़ीज़ बनके मेरी ज़िंदगी मे आया था,
चुरा के दिल मेरा शायर बना गया कोई॥
गुज़र गया वो इधर से तो यूं लगा मुझको,
अंधेरी राह में शम्मे जला गया कोई॥
ग़ज़ल के नाम पे महफिल के दरमियाँ यारों,
फसाना इश्क़ के मेरे सुना गया कोई॥
कभी टूटे हुए दिल से न आशिक़ी करना,
फलसफ़ा इश्क़ का “सूरज” बता गया कोई॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”