धीरे से मेरे कानों में कुछ बोल गया है॥
जीवन में मेरे कोई शहद घोल गया है॥
जन्नत के फरिश्ते की तरह लगता है कोई,
दिल जिसकी अदाओं पे मेरा डोल गया है॥
मदहोश बनाती हैं अकेले में वो मुझको,
ख़ुशबू जो हवाओं में कोई घोल गया है॥
दिल देके मुझे अपना, चुराया है मेरा दिल,
उलफ़त की तराजू में मुझे तोल गया है॥
इक प्यार के “सूरज” को मेरे दिल में बसाकर,
दरवाजे उजालों के कोई खोल गया है॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”