हुज़ूर शिकवा शिकायत ये बेरुख़ी कब तक।
भला निभाओगे यूं मुझसे दुश्मनी कब तक॥
हवा भी तेज़ है सहरा है तपता सूरज है,
बची रहेगी यूं फूलों की ताज़गी कब तक॥
तुम्हारी नज़रे इनायत का इंतज़ार है अब,
असर दिखाएगी मेरी दिवानगी कब तक॥
ज़रा क़रीब तो आओ के रूबरू हो लें,
मोहब्बतों में चलेगी ये दिल्लगी कब तक॥
तुम्ही ने शाखे तमन्ना पे गुल खिलाये है,
बनाके रखोगे तुम ख़ुद को अजनबी कब तक॥
लहू में दिल में इन आँखों में और धड़कन में,
छुपा के रखोगे तुम मेरी दोस्ती कब तक॥
मिलेगा कब तेरे होंठों का जाम “सूरज” को,
बुझेगी खुश्क लबों की ये तष्नगी कब तक॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”