दिखता है तेरा नूर ही हरसू मेरे मौला॥
दिल में जिगर में ज़ेह्न में बस तू मेरे मौला॥
सारा जहां है इश्क़ में पागल तेरे मालिक,
रहमत का तेरी छा गया जादू मेरे मौला॥
सूरज, सितारे, चाँद हैं रौशन सभी तुझसे,
तुझसे ही नूर पाते हैं जुगनू मेरे मौला॥
तू ख़ालिक़-ए-हयात है, तू दावर-ए-महशर,
तुझसे छुपा नहीं कोई पहलू मेरे मौला॥
पत्ता नहीं हिलता यहाँ मर्ज़ी के बिन तेरे,
हर साँस को करता है तू क़ाबू मेरे मौला॥
मैं दे सकूँ मज़लूम मुफ़लिसों को सहारा,
मज़बूत कर दे दस्त-ओ-बाज़ू मेरे मौला॥
तासीर दे शेर-ओ-सुख़न के फूल में ऐसी,
हर शेर से आए तेरी ख़ुशबू मेरे मौला॥
रहमान तू रहीम तू कर दे करम इतना,
आने न देना आँख में आँसू मेरे मौला॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”