हमारे देश की कैसी ये हालत हो रही है।
बहुत ख़स्ता शहीदों की विरासत हो रही है॥
नहीं महफ़ूज1 कोई आम इन्सां है, यहाँ बस,
सियासी-रहनुमाओं2 की हिफाज़त3 हो रही है॥
भरोसा उठ रहा इंसाफ के मंदिर से सबका,
अवामी4 कटघरे में अब अदालत हो रही है॥
ये ढोंगी हैं, नहीं कोई है इनका धर्म मज़हब,
दिखावे के लिए सारी इबादत5 हो रही है॥
ऐ कुर्सी के दलालों जाग जाओ वक़्त रहते,
बिगुल तो बज चुका है अब बग़ावत हो रही है॥
यहाँ पर चारसू6 नफ़रत, अदावत7 और दहशत8,
अमन9 के गीत गाने कि ज़रूरत हो रही है॥
शरीफ़ों से कोई ये जाके पूछे ऐसा क्यूँ है?
सरे बाज़ार क्यूँ? नंगी शराफ़त हो रही है॥
बहुत है झूँठ मक्कारी का हरसू10 बोलबाला,
न जाने अब कहाँ ग़ायब सदाक़त11 हो रही है॥
सजी है चोर, मक्कारों, लफंगों से ये संसद,
बहुत बदनाम ये “सूरज” सियासत हो रही है॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1. महफ़ूज= सुरक्षित 2. सियासी-रहनुमाओं=राजनैतिक नेताओं
3. हिफाज़त = सुरक्षा 4. अवामी= जनता की 5. इबादत= पूजा पाठ
6. चारसू=चारों ओर 7. अदावत= शत्रुता 8. दहशत= आतंक
9. अमन=शांति 10. हरसू= हर तरफ 11. सदाक़त=सच्चाई