हँस के हर ग़म छुपा लिया मैंने।
लब पे नग़में सजा लिया मैंने॥
तुझसे क्या दिल लगा लिया मैंने।
प्यास दिल की बुझा लिया मैंने॥
प्यार का मामला समझना था,
इसलिए दिल लगा लिया मैंने॥
तेरी यादों की तपिश को लेकर,
ख़ुद को शोला बना लिया मैंने॥
सब गिले शिकवे भूलकर अपने,
तुझको दिल में बसा लिया मैंने॥
उसने रोका मुझे बहुत फिर भी,
जाम लब से लगा लिया मैंने॥
चाह कर तुझको सरे महफिल में,
जग को दुश्मन बना लिया मैंने॥
इश्क़ मे तेरे डूब कर “सूरज”,
ख़ुद को आशिक़ बना लिया मैंने॥
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"