हज़ार राहें, मुड़ के देखीं, कहीं से कोई, सदा न आई।
बड़ी वफा से, निभाई तुमने, हमारी थोड़ी, सी बेवफाई।।
(ग़ज़ल को अगर इस धुन पे पढ़ेगे तो मज़ा आयेगा)
सफर मे अपने, कहीं तो ऐसा,
हसीन कोई, मुक़ाम आए॥
कोई जो पूंछे, हमारी ख़्वाहिश,
जुबां पे तेरा, ही नाम आए॥
तुम्हारे दर पे, नज़र टिकाये,
बहुत दिनों से, पड़े हुये हैं।
ये प्यास मेरी, बुझा दे साक़ी,
लबों पे अपने, भी जाम आए॥
झुका के सर को, करूँ इबादत,
उठा हथेली, दुआ जो माँगूँ ,
सुकूँ मिले तब, बेचैन दिल को,
जुबां पे वो सुबहोशाम आए॥
खफा वो मुझसे, इसीलिए थी,
जवाब भेजा न मेरे ख़त का।
ख़बर न आयी, कहीं से उसकी,
न ही कहीं से, पयाम आए॥
पता नहीं उस, में बात क्या थी,
चुरा लिया दिल, न जाने कैसे,
ये दिल न आया, कभी किसी पे,
हसीं तो “सूरज”, तमाम आए॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज