सपनों का संसार बसाना भूल गया।
नफ़रत की दीवार गिराना भूल गया॥
धन दौलत शोहरत की आपाधापी में,
तू क्यूँ अपना यार पुराना भूल गया॥
बातें तो दुनिया भर की तू कर डाला,
लेकिन अपना प्यार जताना भूल गया॥
तेरा ही जादू अब सब पर छाया है,
सारा कारोबार ज़माना भूल गया॥
मुफ़लिस1 बेचारा मंहगाई के डर से,
खुशियों का त्योहार मनाना भूल गया॥
जबसे धोका प्यार में खाया है उसने,
उलफ़त2 के बाज़ार में जाना भूल गया॥
जब से आना जाना तेरा बंद हुआ,
तब से मैं गुलज़ार3 सजाना भूल गया॥
देखा तुझको सरे-अंजुमन4 जब मैंने,
महफिल में अशआर5 सुनाना भूल गया॥
ऐसा खोया तेरे इश्क़ में मैं “सूरज”,
धन-दौलत घर-बार खज़ाना भूल गया॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1. मुफ़लिस= गरीब 2. उलफ़त= प्यार 3. गुलज़ार=गुलशन
4. सरे-अंजुमन= महफिल के दरमियान 5. अशआर= शेर का बहुबचन