शाख़ से टूटा हुआ पत्ता किधर जाएगा।
रुख़ हवाओं का जिधर होगा उधर जाएगा॥
प्यार जब आँखों से इस दिल में उतर जाएगा॥
दिल पे कर लेगा हुकूमत औ ठहर जाएगा॥
तुम जो बेपर्दा कभी हो के चमन में आओ,
रंग फूलों और कलियों का निखर जाएगा॥
बहुत नाज़ुक है ज़रा खेलो सँभलकर इससे,
शीश-ए-दिल जो अगर टूटा बिखर जाएगा॥
क़समें खाता था बहुत वादे किया करता था,
क्या पता था सरे-महफिल वो मुक़र जाएगा॥
साथ ग़र तू है तो ग़म कोई नहीं है “सूरज”,
वक़्त कैसा भी हो हंस रो के गुज़र जाएगा॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”