न जाने क्या हुआ मुझको कभी ऐसा नहीं था॥
दिवाना था मैं पहले भी मगर इतना नहीं था॥
मैं उससे प्यार करता था कभी कहता नहीं था॥
मेरी आँखों में उसने झांक के देखा नहीं था॥
मोहब्बत इश्क़ उलफत हुस्न आख़िर क्या बला है,
तुम्हारे मिलने से पहले कभी समझा नहीं था॥
न जाने कौन से रिश्ते की मज़बूरी थी उसकी,
वो मेरे साथ था लेकिन कभी मेरा नहीं था॥
खुले थे दिल के दरवाजे तेरे ख़ातिर हमेशा,
कभी भी तुम चले आते तुम्हें रोका नहीं था॥
ज़माने में हसीं लाखों हैं लेकिन तेरे जैसा,
मेरी आँखों ने दुनिया में कभी देखा नहीं था॥
तेरे आने से पहले सूनी थी दिल की हवेली,
जहां पर कोई भी मिलने कभी आता नहीं था॥
हमारे हर तरफ दीवार ही दीवार बस थी,
कोई खिड़की नहीं थी कोई दरवाजा नहीं था॥
मैं उसको जानता हूँ कुछ न कुछ तो बात होगी,
कभी चेहरे पे उसके इतना सन्नाटा नही था॥
बहारों से कभी दिल का चमन आबाद होगा,
ख़िज़ाँ में रहनेवाला ये कभी सोचा नहीं था॥
उसे मालूम था कि ख़ुदकुशी अच्छी नहीं है,
मगर इसके अलावा और भी रस्ता नहीं था॥
जिसे अपना समझता था वो मुझको ग़ैर समझेगा,
मुझे इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था॥
लिपटकर रो पड़ा मैं मील के पत्थर से “सूरज”
सफ़र में इस क़दर भी मैं कभी तन्हा नहीं था॥
डॉ॰ सूर्या बाली”सूरज”