लोगों ज़रा इस देश के हालात देखिये।
लुटती हुई जनता को दिन-ओ-रात देखिये॥
बिकने को है तैयार ये रोटी के वास्ते,
महगाई मे ग़रीब कि औक़ात देखिये॥
मज़हब, हुनर, ईमान औ एहसास भी बिके,
बाज़ार मे बिकते हुए ज़ज़्बात देखिये॥
कल तक तो मेरे पास मे इक पैसा नहीं था,
अब हो रही है नोटों कि बरसात देखिये॥
तन्हा ये ज़िंदगी का सफर अब रहा नहीं
है साथ तेरी यादों कि बारात देखिये॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”