राह मुश्किल है मगर चलना पड़ेगा॥
हँस के सारे ज़ख्म भी सहना पड़ेगा॥
जो उछलता है वो गिरता है यहाँ पे,
जो भी जलता है उसे बुझना पड़ेगा॥
भागता था दूर जिससे डर के हरदम,
अब उसी का सामना करना पड़ेगा॥
है गुलाब-ए-इश्क़ मे ना सिर्फ इशरत,
दर्द काँटों का भी तो सहना पड़ेगा॥
बन के मुंसिफ़, आप क्या चुप रह सकेंगे,
झूठ क्या है, सच है क्या, कहना पड़ेगा॥
जो मुझे लगता था कल तक अजनबी,
अब उसी का ही मुझे बनना पड़ेगा॥
रौशनी पे नाज़ क्यूँ करता है सूरज,
गर उगा है तो तुझे ढलना पड़ेगा॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”