रखी हो सीने पे तलवार तो कहूँ किससे।
मौत आकर करे लाचार तो कहूँ किससे॥
मेरे हाफ़िज़ बता फरियाद कहाँ जाके करूँ,
कोई जब अपना करे वार तो कहूँ किससे॥
प्यार की राह मे कोई रोक नहीं पाया मुझे,
अगर तू ही बने दीवार तो कहूँ किससे॥
सफर मे ज़िंदगी के हमनवा कोई न रहा,
रस्ते हो जाये जब दुस्वार तो कहूँ किससे॥
चारागर तेरी दवाओं से कोई शिकवा नहीं,
दिल मेरा इश्क़ का बीमार तो कहूँ किससे॥
मैं बुरे वक़्त मे करता था शिकायत ख़ुद से,
अब जो हरपल है खुशगवार तो कहूँ किससे॥
काम पे आता है हर रोज़ बड़ी शिद्दत से,
“सूरज” मनाये न इतवार तो कहूँ किससे॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”