ये ज़मीं ये आसमां, कल रहे या न रहे।
ये हसीं महफिल जवां, कल रहे या न रहे।।
इस जहाँ मे बाँट दे, जो कुछ भी तेरे पास है,
ये हुनर तेरी अमानत कल रहे या न रहे।।
छोड़ा ना दामन मैं ग़म का, क्यूंकि मुझको था यकीं,
ये ख़ुशी कुछ पल की है, कल रहे या न रहे।।
माटी के पुतले पे इतना क्यूँ भरोसेमंद हो,
दिल मे जो आए वो कर लो, कल रहे या न रहे।।
सब तो मतलब के हैं रिश्ते, कौन किसका है यहाँ,
आज रिश्ता ख़ास है जो, कल रहे या न रहे।।
खोलकर दिल बात कर लो, न रहे शिकवे गिले,
साथ “सूरज” का औ तेरा, कल रहे या न रहे।
डॉ॰ सूर्या बाली, “सूरज”