फ़ुर्कत की आग दिल में लिए जल रहा हूँ मैं।
यादों के साथ साथ तेरी चल रहा हूँ मैं॥
आजा अभी भी वक़्त है तू मिल ले एक बार,
इक बर्फ़ की डली की तरह गल रहा हूँ मैं॥
संजीदा कब हुआ है मुहब्बत में तू मेरी,
हरदम तेरी नज़र में तो पागल रहा हूँ मैं॥
तू तो भुला के मुझको बहुत दूर हो गया,
तन्हाइयों के बीच मगर पल रहा हूँ मैं॥
रोने से तेरे मिटता है हर पल मेरा वजूद,
क्यूंकी तुम्हारी आँख का काजल रहा हूँ मैं॥
यादों के साँप लिपटे हैं तेरी यहाँ वहाँ,
एहसास हो रहा है के संदल रहा हूँ मैं॥
“सूरज” जो उग रहा है सलामी मिले उसे,
पूछेगा मुझको कौन अभी ढल रहा हूँ मैं॥
डॉ सूर्या बाली “सूरज”