मोहब्बत में यूं उलझाया है किसने।
मुझे इस मोड़ पे लाया है किसने॥
मेरा दुश्मन तो कोई भी नहीं था,
ये महफिल में सितम ढाया है किसने॥
कहो वाइज़ से अब तक़रीर न दे,
धुआँ नफरत का फैलाया है किसने॥
मुझे बदनाम क्यूँ करता है अब तू,
मुझे इन गलियों में लाया है किसने॥
जला के दिल में अरमानों के शोले,
मेरी ख़्वाहिश को भड़काया है किसने॥
कोई रस्ता नहीं अब इसके
आगे,
मुझे “सूरज” यहाँ लाया है किसने॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”