मसीहा हो गया ख़ुदगर्ज़ क्या किया जाये।
भुला चुका है सभी फ़र्ज़ क्या किया जाये॥
मिले हर एक को रोटी मकान औ कपड़े,
किया है सबने यही अर्ज़ क्या किया जाये॥
बना के जांच कमेटी हर एक मुद्दे पर,
निभा रहे हैं सभी फ़र्ज़ क्या किया जाये॥
उधार लेके निभाए थे झूँठे रस्मो-रिवाज,
चढ़ा है सर पे बहुत क़र्ज़ क्या किया जाये॥
वो छुप के वार करे पीठ पर मेरी “सूरज”,
अजब है दोस्ती का तर्ज़ क्या किया जाये॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”