जलते हुए मकान, जलते हुए इंसान,
क्या किसी ने देखा।
ऑफिस, बाज़ार, अस्पताल, स्कूल और
जाने कहाँ कहाँ फैला हुआ भ्रष्टाचार,
क्या किसी ने देखा?
भ्रष्टाचार कहीं भी आसानी से देखने को मिल जाएगा,
क्या आप उसे देखना चाहेंगे?
देखिये ! खूब देखिये...
यह बिलकुल नहीं सरमाएगा।
निर्लज्ज है, पुराना है, कण कण मे समाया है,
भ्रष्टाचार को हम, आप या किसी और ने बनाया है?
क्या आप भ्रष्टाचारी है?
नहीं तो।
तो भ्रष्टाचार मे क्यूँ लिप्त हैं?
आप से मतलब, मैं लिप्त हूँ अपने काम में,
बैठा हूँ अपने मुकाम में,
आप कौन हैं? मेरे काम मे हस्तक्षेप करनेवाले?’
फ़र्जी हिदायत देने वाले,
क्या आपको पता नहीं भ्रष्टाचार ही मेरा व्यापार है,
यही मेरा यार है, यही मेरी सरकार है।
हाँ....मैं भ्रष्टाचारी हूँ, भ्रष्टाचारी हूँ।
क्या आपको इससे कोई सरोकार है।
आप यहाँ से जाइए, अपना काम करिए।
इसको आप क्या करेंगे ये तो,
भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार है...
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”