बढ़ी जो दूरियाँ तो और प्यार करने लगा।
उसी का शामो-सहर इंतज़ार करने लगा॥
चले भी आओ के दिल है बहुत उदास मेरा,
ये इंतज़ार भी दिल बेक़रार करने लगा॥
कभी रहा जो मेरे साथ दोस्तों की तरह,
वो छुपके पीठ पे अब मेरे वार करने लगा॥
यकीं कभी वो किसी पे किया नहीं था मगर,
ज़रा सा मुझसे मिला एतबार करने लगा॥
इसी बहाने सही याद तो करेगा कभी,
वो अब रक़ीबों में मुझको शुमार करने लगा॥
अगर मैं डूब भी जाऊँ तो वो बचा लेगा,
इसी भरोसे पे दरिया मैं पार करने लगा॥
डॉ. सूर्या बाली "सूरज"