घर की तरफ से तेरे जो आते हैं रास्ते।
बीते दिनों की याद दिलाते हैं रास्ते॥
तू भी ज़रा निकल के कभी दो कदम तो चल,
मंज़िल के सिम्त तुझको बुलाते है रास्ते॥
जो उँगलियाँ पकड़ के कभी चलते थे मेरी,
वो लोग आज मुझको बताते हैं रास्ते॥
बारिश हो धूप गर्मी हो या सर्द हवाएँ,
मौसम कोई हो साथ निभाते हैं रास्ते॥
अक्सर इन्ही पे चल के जवां होती मोहब्बत,
आँखों से हो के दिल को जो जाते हैं रास्ते॥
भटकाते हैं, लगाते हैं ठोकर भी पाँव में,
चलने के सलीक़े भी सिखाते हैं रास्ते॥
सारा जहां सलाम उन्हें करता है “सूरज”
दुनिया से हट के जो भी बनाते हैं रास्ते॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”