बदन की तेरे ये ख़ुशबू कमाल कर देगी।
चमन के फूलों का जीना मोहाल कर देगी॥
पता नहीं था के इक दिन ये बेवफ़ाई तेरी,
हमारे दिल की जमीं लाल लाल कर देगी॥
जो फसले-गुल की इनायत कभी अगर होगी,
ख़िज़ाँ से उजड़ा चमन मालामाल कर देगी॥
बगावत भूखों की, नंगों की, औ गरीबों की,
किसी भी दिन, कहीं पे भी बवाल कर देगी॥
कहाँ तक राहे-शराफ़त पे चल सकेगा वो,
भूख लाचारी जिसे पाएमाल कर देगी॥
दिवानों प्यार में सौदा कभी नहीं होता,
बुरी आदत है, ये आदत दलाल कर देगी॥
ज़वाब देते नहीं तुमसे बनेगा “सूरज,”
पलट के बेबसी गर कुछ सवाल कर देगी॥
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"