बन के मै प्यार का पैग़ाम तुझे चाहूँगा।
छोड़ के दुनिया के हर काम तुझे चाहूँगा॥
सोच सकता भी नही तेरे बिना जीने की,
चाहे अब कुछ भी हो अंजाम तुझे चाहूँगा॥
धडकनों की तरह सीने मे बसाया तुमको,
ज़िंदगी कर के तेरे नाम तुझे चाहूँगा॥
इश्क़ जो करता हूँ तुमसे तो छुपाना कैसा,
कर के इज़हार सरे-आम तुझे चाहूँगा॥
मैं अगर खो भी गया भीड़ मे दीवानों की,
रहके दुनिया में भी गुमनाम तुझे चाहूँगा॥
प्यार मे तुझको कभी रुसवा न होने दूंगा,
लेके सर अपने सब इल्ज़ाम तुझे चाहूँगा॥
भूल पाऊँगा नहीं अब तो कभी भी “सूरज”
दिन हो या रात सुबह-शाम तुझे चाहूँगा॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”