नज़र से शख़्स की फितरत को हम पहचान लेते हैं।
किसी के दिल मे क्या है, दूर से ही जान लेते हैं॥
लगे हैं बोलने, उनकी जुबां, अब रात दिन हम भी,
अगर वो दिन को कह दें रात, तो हम मान लेते हैं॥
डिगा सकती नहीं हैं मुश्किलें, पक्के इरादों को,
वो हम कर डालते हैं, दिल मे जो कुछ ठान लेते हैं॥
ये कैसी है अदा उनकी, भला कैसी नज़ाकत है,
वो क़ातिल जलवे अब तो, रोज़ मेरी जान लेते हैं॥
सलीका है नहीं जिनको वफ़ाई कैसे की जाये,
वही “सूरज” वफा का मेरे इम्तेहान लेते हैं॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”