नज़र से अपनी वो करके घायल कहाँ न जाने चला गया है॥
वो कौन है जो करार दिल का मेरे चुरा के चला गया है॥
उसे ज़रा भी ख़याल है क्या उदास कितनी हमारी रातें,
दिखा के मुझको तरह तरह के हसीन सपने चला गया है॥
करीब आया नसीब बनके वो दिल पे जादू सा छा गया था,
बना के मुझको हबीब अपना कहाँ अकेले चला गया है॥
छुड़ा के बाहें वो मुझसे अपनी जहाँ सफ़र में जुदा हुआ था,
खड़े हैं अब भी उसी जगह पे जहां छोड़ के चला गया है॥
उसी की यादों में खोये खोये बहुत तड़पते हैं रात दिन हम,
मुझे समंदर के बीच लाकर वो ख़ुद किनारे चला गया है॥
वो ज़िंदगी में मेरी था आया चमन में जैसे बहार आए,
उजड़ गया है चमन ये दिल का वो दूर जबसे चला गया है॥
उसी की बातें, उसी की ख़्वाहिश, उसी के सपने, ख़याल उसका,
बसा है दिल में अभी वो “सूरज” भले यहाँ से चला गया है॥
डॉ. सूर्या बाली ”सूरज”