दुनिया ने कहा इश्क़ में रुसवाई1 बहुत है
मुझको भी लगा बात में सच्चाई बहुत है
आई है मुझे कहने को वो ईद मुबारक
शायद वो इसी बात से घबराई बहुत है
देखेगी मगर ज़ख़्म को मरहम नहीं देगी
ये भीड़ ज़माने की तमाशाई2 बहुत है
दुनिया को मैं नादान नज़र आता हूँ लेकिन
माँ कहती है के मुझमें भी दानाई3 बहुत है
हमराज़4 मेरा तेरे सिवा कोई नहीं है
कहने को ज़माने से शनासाई5 बहुत है
इक ताजमहल उसकी मुहब्बत में बना दूँ
बनता ही नहीं क्या करूँ महँगाई बहुत है
तुम तीर न ख़ंजर न ये तलवार उठाओ
करने के लिए क़त्ल ये अंगड़ाई बहुत है
मैं झील सी आँखों में कहीं डूब न जाऊँ
आँखों में तेरे प्यार की गहराई बहुत है
कहने को मेरे पास तो है सारा ज़माना
इक तेरे बिना बज़्म5 में तन्हाई बहुत है
हर सुब्ह का अंजाम वही शाम सा ढलना
'सूरज' ने मुझे बात ये समझाई बहुत है
डॉ. सूर्या बाली 'सूरज'
1. रुसवाई = बदनामी 2. तमाशा देखने वाली 3. दानाई= समझदारी 4. हमराज़ = हर भेद जानने वाला, मित्र 5. शनासाई= जान पहचान 6. बज़्म =महफ़िल