दिल में तस्वीर जो तेरी थी मिटा दी मैंने।
तेरी हर याद भी इस दिल से भुला दी मैंने॥
ज़िंदगी तुझको मुबारक हो तेरे ख़्वाबों की,
अपने हर ख़्वाब की ताबीर जला दी मैंने॥
जो तेरी याद दिलाती थी रुलाती थी मुझे,
अपने कमरे से वो हर चीज़ हटा दी मैंने॥
ये समझकर कि कोई ख़्वाब था मिलना तेरा,
तेरी हर एक मुलाकात भुला दी मैंने॥
प्यार की लौ जो मेरे दिल में कभी जलती थी,
अपने हाथों से ही ख़ुद आज बुझा दी मैंने॥
लाख समझाया था लेकिन ये कहाँ सुनता था,
इसलिए दिल को तड़पने की सज़ा दी मैंने॥
तुमने हर गाम पे दिल मेरा दुखाया “सूरज”
तुमको ख़ुश रहने की हर बार दुआ दी मैंने॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”