तू याद बहुत आई मौसम ने जब सताया।
तारों पे छेड़ी सरगम, नगमों को गुनगुनाया॥
तू याद बहुत आई....
तनहाई क्या होती है, मालूम न था मुझको,
अब तुमसे ज़ुदा होके, ये राज़ समझ पाया॥
तारों पे छेड़ी सरगम...........
सोचा की जाम पीके, ही तुझको भूल जाऊँ,
मैं भूल गया ख़ुद को, तुमको न भुला पाया॥
तारों पे छेड़ी सरगम...........
तेरे गेसुओं के खुशुबू, मेरे पास तो अब भी है,
तेरा चाँद सा वो मुखड़ा, नज़रों मे है समाया॥
तारों पे छेड़ी सरगम...........
तुझको ही ख़ुदा माना, तेरी ही इबादत की,
तुझको ही सनम दिल मे, “सूरज” ने है बसाया॥
तारों पे छेड़ी सरगम...........
तू याद बहुत आई मौसम ने जब सताया।
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”