तुम क्या मिले मुझे मेरी किस्मत बदल गयी।
लगता है कली ज़िंदगी की मेरे खिल गयी॥
गुल हसने लगे , गुलचे मुस्करा रहे सभी,
जाने सबा ये कैसी गुलशन मे चल गयी।।
बुलबुल जो तड़पती थी पिजड़े के दरमियाँ,
पाते ही मौका आज वो कैसे निकाल गयी॥
ग़ैरों ने गालियां दी, कुछ भी नहीं कहा,
मैंने जो दिल की बात कही, वो भी खल गयी॥
मुझको यक़ी था “सूरज” आएंगे वो जरुर,
बस उनके इंतज़ार मे ये उम्र ढल गयी॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”