तुम्हारे इश्क़ में ख़ुद को मिटा लिया मैंने॥
जिगर में रोग ये कैसा लगा लिया मैंने॥
लबों पे गीत ग़ज़ल नज़्म अब हमारे है,
तुम्हारे प्यार को नग़मा बना लिया मैंने॥
देख के धूल धुआँ धुंध धमाके धक्के,
शहर से दूर कोई घर बसा लिया मैंने॥
लबों पे अपने सजा के हसीं तवस्सुम को,
बड़े सलीके से हर ग़म छुपा लिया मैंने॥
सुहानी रात ये रौशन हसीं सितारों से,
तुझे भी चाँद समझ के बुला लिया मैंने॥
लुटा के फूल चमन के तुम्हारी राहों में,
घरौंदा ख़ार से अपने सजा लिया मैंने॥
तेरी वफ़ा पे मोहब्बत पे कर के शक “सूरज”,
नज़र में अपनी ही ख़ुद को गिरा लिया मैंने॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”