तुझसे उलफ़त(1) है और तुझसे आशिक़ी अपनी॥
तेरे क़दमों में डाल दी है हर ख़ुशी अपनी॥
एक तेरे सिवा दुनिया में कौन मेरा था,
तू जो रूठा तो लगा रूठी ज़िंदगी अपनी॥
चाह कर भी मैं तुझे भूल नहीं सकता हूँ,
इश्क़ में हो गयी कुछ ऐसी बेबसी अपनी॥
अब मज़ा पीने पिलाने मे कुछ नहीं साक़ी(2),
लुफ़्त देती ही नहीं शौक़-ए-मैकशी(3) अपनी॥
भीड़ में रहके भी लगता है मैं अकेला हूँ,
अब तो लगती है ये सूरत भी अज़नबी अपनी॥
तू मिला तो लगा हासिल हुई मंज़िल मुझको,
तू जो बिछड़ा तो अंधेरे मे राह भी अपनी॥
दूरियाँ बढ़ती गयीं अपने दरमियां(4) “सूरज”,
बात कह पाया नहीं उनसे फिर कभी अपनी॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1. उलफ़त =प्यार 2. साक़ी =शराब पिलाने वाला/वाली 3. शौक़-ए-मैकशी =शराब पीने का शौक़ 4. दरमियाँ=बीच में