तबाह जिसके लिए मैंने हर खुशी कर ली।
उसी ने आज सरे बज़्म(1) बेरुख़ी(2) कर ली॥
ख़ुदा वहीं पे उतर आया फ़रिश्ता(3) बन के,
झुका के सर को जहां मैंने बंदगी(4) कर ली॥
बड़ों से दोस्ती करने की आरजूँ(5) लेकर,
नदी ने जाके समंदर मे ख़ुदकुशी(6) कर ली॥
बताओ याद कभी उसकी भी आई जिसने,
तुम्हारे प्यार मे बरबाद ज़िंदगी कर ली॥
हमेशा होती हैं शाखों पे उँगलियाँ ज़ख्मी,
ये जानकर भी गुलाबों से दोस्ती कर ली॥
हिज्र(7) की रात में तनहाई के अंधेरे में,
जला के दिल के चरागों को रौशनी कर ली॥
हंसी मज़ाक की चाहत तो दिल मे थी “सूरज”
ज़रा सा वक़्त मिला फिर से दिल्लगी कर ली॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1॰ सरे बज़्म= भरी महफिल 2॰ बेरुख़ी=उदासीनता, मुह मोड़ लेना 3॰ फरिश्ता =देवदूत
4॰ बंदगी= पूजा, इबादत 5॰ आरजू =इच्छा 6॰ ख़ुदकुशी=आत्महत्या 7॰ हिज्र= वियोग, अलगाव