हँस कर ग़मों की आंधियाँ वो सह नहीं सका।
जो आदमी ज़मीं से जुड़ा रह नहीं सका॥
हिकमत1 से चोटियों पे पहुँच तो गया मगर,
कुछ देर तक वहाँ पे टिका रह नहीं सका ॥
जिसने बग़ावतें2 नहीं की ज़ुल्म के खिलाफ़,
इज़्ज़त से शानो शौक़ से वो रह नहीं सका॥
तेरे ही इंतिज़ार में ठहरा हूँ झील सा,
दरिया3 की तरह खुल के कभी बह नहीं सका॥
सैलाब4 आंसुओं का मेरी आँख में तो था,
ये बात और है वो कभी बह नहीं सका॥
वो चाहता था मुझको दिलो जान से मगर,
जज़्बात5 अपने दिल के कभी कह नहीं सका॥
यादों का क़स्र6 दिल में सलामत7 है आज भी,
जाने के तेरे बाद भी ये ढह नहीं सका॥
ज़ुल्मों के बर-खिलाफ़8 ही “सूरज” खड़ा रहा,
बे-दाद9 ज़िंदगी में कभी सह नहीं सका॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
1. चाल, जुगाड़, 2. विद्रोह 3. नदी 4. जल-प्लावन, बाढ़ 5. भावनाएँ
6. महल 7. कायम, बरक़रार 8. उल्टा, विपरीत 9. अन्याय, अत्याचार