जबसे तुझसे मोहब्बत मैं करने लगा॥
देख के तुझको ही जीने मरने लगा॥
अब तो लगता नहीं दिल कहीं पे मेरा,
याद कर के तुझे दिन गुजरने लगा॥
जब से मरहम मिला है तेरे प्यार का,
ज़ख्म-ए-दिल देखिये मेरा भरने लगा॥
खूबसूरत सी लगने लगी ज़िंदगी,
रंग चाहत का मेरी निखरने लगा ॥
मेरे ख़्वाबों ख़्यालों में अब तू ही तू,
अक्स तेरा ही हरसूँ उभरने लगा॥
जब मिला तू मुझे तो सुकूँ मिल गया,
ज़िंदगी का हर इक पल सँवरने लगा॥
खूबसूरत हसीं झील सी आँख में,
तिश्नगी लेके “सूरज” उतरने लगा॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”