हाय कैसी हो? शायद अब तक नाराज़ हो?
हो भी न क्यूँ। तुम्हें पूरा हक़ है नाराज होने का।
मुझे मालूम नहीं तुम मुझे याद करती हो की नहीं,
पर मै तुम्हें कभी भूला ही नहीं।
तुम्हारे नाम का फोल्डर अब भी मेरे लैपटाप पे पड़ा है,
जिसमे अब पहले की तरह भीड़ भाड़ नहीं रहती,
तुम्हारी कुछ स्नैप और नोट्स पड़े हैं उसमे,
जब भी याद आती हो तो
माऊस का कर्सर पहुंचता है और खोल देता है उस फोल्डर को
और फिर खो जाता हूँ पुराने लम्हों और यादों में,
ये इंटरनेट भी क्या चीज़ है,
बड़ा परेशान करता है दो चाहने वालों को,
बड़ी गलतफ़हमी पैदा करता है,
अभी कल ही तुम्हारे अकाउंट से एक मेल आया,
सोचा तुमने भेजा होगा,
खोला तो पता चला एक गलत साइट का लिंक था उसमे,
जैसे मुझे साँप सूंघ गया हो? काटो तो खून नहीं,
बड़ा ठगा सा महसूस कर रहा था,
फिर क्या था तुम्हारे नाम के ईमेल ढूढ़ने लगा,
अच्छा हुआ मैंने तुम्हारे नाम का फोल्डर बनाया था,
तुम्हारी ईमेलों को उसमे छुपाया था,
मैंने कई ईमेल पढ़ी भी नहीं थी,
कितनों को पढ़ा था लेकिन ध्यान नहीं दिया था, की क्या था उसमे।
लेकिन आज सभी बड़ी अनमोल सी लग रही थी,
जैसे कोई बेशकीमती धरोहर हों,
आज बड़े दिनो के बाद फिर हंसा हूँ, वो भी अकेले मे।
वही असाइन्मंट का रोना, वीकेंड पे मूवी के प्लान, बाहर डिनर की जिद…..
आज पता नहीं सब कुछ क्यूँ अच्छा लग रहा है।
सच मे किसी ने कहा है, “मिल जाये तो मिट्टी है, खो जाये तो सोना है”
इस आशा के साथ की इंटरनेट कभी कभी दो दोस्तों को फिरसे मिला देता है।
अब मैं उस जंक मेल की रिप्लाइ भेज रहा हूँ,
अपने दरदों की गहराई भेज रहा हूँ,
तुम्हें अगर सही लगे तो जबाब देना।
वरना जंक मेल समझ के डेलीट कर देना।
डॉ॰ सूर्या बाली "सूरज"