छुपती है कहाँ प्यार की झंकार किसी से
जुड़ते हैं अगर दिल के कहीं तार किसी से
करना न कभी प्यार में तकरार किसी से
उठती है कहाँ इश्क़ में तलवार किसी से
इक दिल था मेरे पास जो वो लेके गया है
अब तुम ही कहो कैसे करूँ प्यार किसी से
आगाजे मुहब्बत में ये अंजाम हुआ है
डरता है ये दिल करने को इज़हार किसी से
दिल का जो तेरे हाल सुनेंगे तो हँसेंगे
करना न ग़मों का कभी इज़्कार किसी से
काशी भी मेरा है वही काबा भी वही है
मुझको न ज़माने में है दरकार किसी से
रौनक़ थी उसी से तो उसी से थी बहारें
होगा न चमन दिल का ये गुलज़ार किसी से
फूलों की तरह आज भी किरदार है अपना
हम रखते नहीं दिल में कभी खार किसी से
मैं तुझसे अलग होके कभी जी नहीं सकता
कहनी ये पड़ी बात कई बार किसी से
पर काटने को सब मेरा तैयार हैं ‘सूरज’
देखी नहीं जाती मेरी रफ़्तार किसी से
डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’