चला जाता वो देखो मुझसे दूर आहिस्ता1 आहिस्ता।
हुआ है शीश-ए-दिल2 चूर चूर आहिस्ता आहिस्ता॥
वो जब मिलता है मुझसे पूछता है ख़्वाहिशें3 मेरी,
मगर मैं टाल जाता हूँ हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता॥
निगाहें जब से मेरी चार उससे हो गयी यारों,
के चढ़ता जा रहा मुझपे सुरूर4 आहिस्ता आहिस्ता॥
उठा जाता नहीं है मौत के बिस्तर से फिर भी मैं,
बुलाओगे तो आऊँगा ज़रूर आहिस्ता आहिस्ता॥
ज़मीं पर पाँव तो पड़ते न थे कल तक जवानी में,
बुढ़ापे में मिटा उसका ग़ुरूर5 आहिस्ता आहिस्ता॥
ये “सूरज” और कुछ दिन बैठ दानिशमंद6 लोगों मे,
के आते आते आएगा शऊर7 आहिस्ता आहिस्ता॥
डॉ॰ सूर्या बाली “सूरज”
1. आहिस्ता= धीरे से 2. शीश-ए-दिल =हृदय रूपी काँच 3. ख़्वाहिशें=इच्छाएँ 4. सुरूर =नशा
5. ग़ुरूर=घमंड 6. दानिशमंद=ज्ञानी, विद्वान 7. शऊर =बुद्धि, ज्ञान