चराग मिल के जलाओ अजी दिवाली है॥
सियाह1 रात हटाओ अजी दिवाली है॥
भुला के हर गिला शिकवा क़रीब आ जाओ,
गले से सबको लगाओ अजी दिवाली है॥
किसी भी दर2 पे ग़मों की न तीरगी3 ठहरे,
खुशी के दीप जलाओ अजी दिवाली है॥
चरागो जलते रहो शाम से सहर4 तक तुम,
हवा के होश उड़ाओ अजी दिवाली है॥
बिखर रही है चरागो की रौशनी हरसू5,
अंधेरे दिल के मिटाओ अजी दिवाली है॥
ज़मीं पे आज उतर आई कहकशाँ6 जैसे,
नक़ाब तुम भी उठाओ अजी दिवाली है॥
हरेक शख़्स को खुशियाँ मिले यहाँ “सूरज”,
जहां में प्यार लुटाओ अजी दिवाली है॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
1=अंधेरी 2=दरवाजा 3=अंधेरा 4=सुबह 5=चारो ओर 6= आकाश गंगा